अनजान हर रोक टोक से, वो दरिया यु बह रहा था |
वो मस्त रंगीले हवादार गुब्बारे ,
मौजूद गलियों में हम शाम से सारे
हर पल में हर रंग, जीवन भर रहा था
अनजान हर रो टोक से...........
बेख़ौफ़ बेपरवाह और बेखबर
अच्छे और बुरे से थे बेशक मगर
हर पल में थी ख़ुशी, हर पन्ना कह रहा था
अनजान हर रोक टोक से...................
उन चाँद और तारो के सपने सजीले
और तितली पकड़ने के ख्वाब रंगीले
गुम एसी यादो में, वो बचपन हस रहा था
अनजान हर रोक टोक से...................
दीप्ती©2009