Monday, April 18, 2011

खोजते है दिन रात तुम्हारी कही बात का मतलब
बयां खुद करते है तेरी आँखों के जस्बात का मतलब

और कुछ तो अब तमन्ना रही नहीं इस दिल में
जाने क्या हुआ उस हसीन मुलाकात का मतलब

हर तरफ सूनापन, भीड़ में भी लगे अकेला सा
किसको समझाए हम अपने हालात का मतलब

तू दुआ में तू सदा में और तू ही इबादत में है
और कैसे बयां करे अपनी हर रात का मतलब

Tuesday, May 4, 2010

kavita

बहुत हसरते है दिल में, बहुत से है राज़, तुमसे कुछ नया, कुछ बीता कहूँ|
अपने कान नहीं दिल खोले रखना, चलो आज एक मेरी कविता कहूँ||

कुछ इन फूलो की, कुछ नदियों की और कुछ, बीती हुई सदियों की|
मेरे शब्दों की सरिता कहूँ, चलो आज एक मेरी कविता कहूँ||

कुछ प्यारे लम्हों की, कुछ गम के नगमो की, कुछ ऊँची कुछ नीची|
मेरे जीवन की कलिका कहूँ, चलो आज एक मेरी कविता कहूँ||

कुछ देवो की कुछ दानव की कुछ मनु और मानव की|
मेरी ओर की समिधा कहूँ, चलो आज एक मेरी कविता कहूँ||

©२००९ दीप्ती

Tuesday, March 30, 2010

zindagi

देखो अब क्या गुल खिलाती है ज़िन्दगी,
जाने अब कौनसा रंग लती है ज़िन्दगी|
जब जब हम रूठ के जाने लगते है,
तब तब हमे मना लती है ज़िन्दगी||

कभी गैरो में अपनों से, कभी अपनों में गैरो से,
ऐसे लोगो से पहचान कराती है ज़िन्दगी |

कभी गम की एक बूँद भी रहने नहीं देती,
फिर देकर नयी ख़ुशी हंसाती है ज़िन्दगी|

उस खुदा के दर पे हम शुक्रिया करते है,
जिसने हमे ये नवाजी है ज़िन्दगी|

जब हम में ही चलने का हौसला न हो,
तब खुद ये ही रुक जाती है ज़िन्दगी|

दीप्ती©2009

Saturday, January 2, 2010

zindagi

एक पल में यु कैसे बदल जाती है ज़िन्दगी
गिरती है रूकती है और संभल जाती है ज़िन्दगी

नए साल के आने की कितने ख़ुशी मानते है हम
पर सोचो तो यु पल पल जाती है ज़िन्दगी

कोई बात नहीं कल आयेगा फिर हमारा
इतने में ही बेचारी बहल जाती है ज़िन्दगी

रुकने का नाम नहीं है ज़िन्दगी सुन ले
और ये सुनते ही फिर चल जाती है ज़िन्दगी

ख्वाब से कितने बुनते रह जाते है हम
और ये हाथ से निकल जाती है ज़िन्दगी

©२०१०दीप्ती


Monday, December 28, 2009

बचपन

एक दिन जो खोली बचपन की किताब, हर लम्हा सुनहरा था,
अनजान हर रोक टोक से, वो दरिया यु बह रहा था |

वो मस्त रंगीले हवादार गुब्बारे ,
मौजूद गलियों में हम शाम से सारे
हर पल में हर रंग, जीवन भर रहा था
अनजान हर रो टोक से...........

बेख़ौफ़ बेपरवाह और बेखबर
अच्छे और बुरे से थे बेशक मगर
हर पल में थी ख़ुशी, हर पन्ना कह रहा था
अनजान हर रोक टोक से...................

उन चाँद और तारो के सपने सजीले
और तितली पकड़ने के ख्वाब रंगीले
गुम एसी यादो में, वो बचपन हस रहा था
अनजान हर रोक टोक से...................
दीप्ती©2009

Tuesday, November 24, 2009

dil se

ज़िन्दगी को करीब से देख कर अच्छा लगता है,
आप का हर एक लफ्ज़ सच्चा लगता है
कर चुके है तय सफ़र बहुत कुछ मगर
ये दिल हमे आज भी बच्चा लगता है|

रोज होते है रूबरू नयी कश-म-कश से हम
है तजुर्बा वो भी हमे कच्चा लगता है |

रात हो चली हो राह में फिर भी मगर,
ये आपका साया भी धूप सा लगता है|

है शिकायत कि बाटते नहीं गम हम कभी
क्या करे रोना भी हमे न अच्छा लगता है|

Wednesday, September 16, 2009

यूँही

ज़िन्दगी के इस मोड़ पर अब दास्ताँ क्या कहे
ये मंज़र देख कर हम हो गए बेजुबान, क्या कहे
कभी बातो से कभी खामोशी से आप समझ गए होंगे
चुप रहे यु ही हमेशा कि बेवजह, क्या कहे

तसव्वुर में आपके यु खोये रहते थे हम
कब शाम सा होता था, आसमान क्या कहे

ज़िन्दगी के आखिरी पल तक आपका साथ हो
मेरे खुदा अब तुमसे हम, और दुआ क्या कहे

अपनी चाहत पर भरोसा और दिल में प्यार रखना
सदा खुश रहने का अब, फलसफा क्या कहे

दीप्ती©2009