Tuesday, March 30, 2010

zindagi

देखो अब क्या गुल खिलाती है ज़िन्दगी,
जाने अब कौनसा रंग लती है ज़िन्दगी|
जब जब हम रूठ के जाने लगते है,
तब तब हमे मना लती है ज़िन्दगी||

कभी गैरो में अपनों से, कभी अपनों में गैरो से,
ऐसे लोगो से पहचान कराती है ज़िन्दगी |

कभी गम की एक बूँद भी रहने नहीं देती,
फिर देकर नयी ख़ुशी हंसाती है ज़िन्दगी|

उस खुदा के दर पे हम शुक्रिया करते है,
जिसने हमे ये नवाजी है ज़िन्दगी|

जब हम में ही चलने का हौसला न हो,
तब खुद ये ही रुक जाती है ज़िन्दगी|

दीप्ती©2009