Wednesday, September 16, 2009

यूँही

ज़िन्दगी के इस मोड़ पर अब दास्ताँ क्या कहे
ये मंज़र देख कर हम हो गए बेजुबान, क्या कहे
कभी बातो से कभी खामोशी से आप समझ गए होंगे
चुप रहे यु ही हमेशा कि बेवजह, क्या कहे

तसव्वुर में आपके यु खोये रहते थे हम
कब शाम सा होता था, आसमान क्या कहे

ज़िन्दगी के आखिरी पल तक आपका साथ हो
मेरे खुदा अब तुमसे हम, और दुआ क्या कहे

अपनी चाहत पर भरोसा और दिल में प्यार रखना
सदा खुश रहने का अब, फलसफा क्या कहे

दीप्ती©2009

Friday, September 11, 2009

दोस्ती

बचपन से अब तक हर किस्से की गवाह दोस्ती
हर मोड़ पर हमको मिली बेपनाह दोस्ती
आंसू से हँसी तक सदा साथ साथ है
ऐसी है हर दोस्त की हमराह दोस्ती

अकेले से हो जाते थे हम तब दोस्तों
होती थी हमसे जों ये खफा दोस्ती

तुम से ही तो हर दर्द हर राज़ बांटा है
तू ही तो रही हमारी मैकदा दोस्ती

खूबसूरत तुझसे ज़िन्दगी का हर पड़ाव है
बहुत महफूज़ है तेरी पनाह दोस्ती

तू रही है रहनुमा ज़िन्दगी की हर राह पर
तेरे रहते न होंगे कभी गुमराह दोस्ती

तू साथ है तो हर तूफ़ान पार कर लेंगे
फ़िर कश्ती की भी न है परवाह दोस्ती

दीप्ती ©2009

Thursday, September 10, 2009

नई रचना

आज एक बिल्कुल ताजी रचना यहाँ पोस्ट कर रही हु जो इसी वक्त ब्लॉग पर लिख रही हु आशा कीजिये अच्छी हो

एक तमन्ना है इन पंछियों से बात करने की
एक आरजू है इस जीवन में तितलियों के रंग भरने की
ख्वाब है की हमको भी पंख लग जाए
एक जुस्तजू है इस असमान को पार करने की

कभी इस चाँद से कभी सितारों से जलते है हम
एक गुजारिश है कुछ जिंदगियों में रौशनी करने की

चाहत है इन नदियों का रुख मोड़ दे हम कभी
एक कसक है सूखे दरख्त को तर करने की

ऐ बादल न तरसाया कर उन आँखों को युही
एक दुआ है तेरे बस झूम कर बरसने की

ऐ खुदा कुछ सवाल दिमाग में है अजीब से
एक इछा है तुमसे बाते दो चार करने की

दीप्ती©2009

Thursday, September 3, 2009

नीर नारी

एक और कविता आज पोस्ट कर रही हूँ , खुदा की दो बहुत ही खास रचना की तुलना करने की कोशिश की है आशा है आपको पसंद आयेगी

नीर नारी
तुझ बिन जीवन का अंश नहीं
तुझ बिन मानुष का वंश नहीं
सारा जग तेरा आभारी
तू नीर है तू नारी

राह मे आये चाहे जितने भी रोडे
तू अपने साहस से हर मुश्किल को तोडे
शक्ति तुझमे है सारी
तू नीर है तू नारी

तुझमे सब मिल जाते है
तृप्त सब तुजसे हो जाते है
हो सम्मान के अधिकारी
तू नीर है तू नारी

तुम अविरल बहते रहते हो
तुम धैर्य बांधे रहते हो
हर तरह तुम अविकारी
तू नीर है तू नारी

दीप्ती©2009

गम

मेरे प्रिय ब्लॉग मित्रो आज बहुत दिनों के बाद मैं अपने ब्लॉग की सुध ले पाई हूँ उसके लिए अवश्य ही खेद है आज जो रचना मैं पोस्ट कर रही हूँ वो एक करीबी दोस्त के लिए है आशा है उसे पसंद आयेगी और आप को भी

जब जब गमो के बादल ज़िन्दगी पे छा जाते है
वो इन दो आँखों से बरस के गिर जाते है

बह जाने दो इन अश्को को, ग़मों को दूर जो करते है
ग़मी में ही रहते है जो इन्हें बचने का कसूर करते

गमो से भरा दिल रोने से हल्का हो जाता है
और ये गम मेरे दोस्त बस कलका हो जाता है

खुदा की इनायत हमपे ये हमारे अश्क है
पत्थर हो जाते है वो आँखे जो रहती खुश्क है

और हंसते है वही यहाँ जो रो भी सकते है
वो ही यहाँ पाते है कुछ जो खो भी सकते है
दीप्ती©2009