प्रिय दोस्तों आज फिर मैं ज़िन्दगी पर कुछ लिख रही हूँ ज़रा गौर करे शायद आपको भी मंजिले नज़र आने लगे
ज़िन्दगी की राह में कई मुश्किलें है
रास्ते सब साफ़ से हमे कब मिले है
हर रोज़ एक नयी कश-म-कश है
गौर से देखो इन्ही में मंजिले है
ख्वाब में गुम से तुम ही तो नही
चल पड़े है साथ में कई काफिलें
राह में कांटो से तुम डर ना जाना
कांटो में ही तो कई गुल खिले है
आपनी ज़िन्दगी को तो सबने रोशन किया
बहुत है लोग जो औरो के लिए जले है
©२००९ dipti
Saturday, July 25, 2009
Friday, July 17, 2009
नमस्कार दोस्तों बहुत दिनों बाद आज एक नयी कविता पोस्ट कर रही हु जी मुझे मेरे पुराने नोट्स खोजते हुए मिली है
ज़िन्दगी के कितने रास्ते वीराने होते है
जहाँ भी देखो वहां सिर्फ बेगाने होते है
गम तो ये है की बनके, दोस्त वो आते है
कमबख्त बेवफा भी, वफ़ा के बहाने होते है
हर रोज़ डूबी होती है शराब में कितनी ही जिंदगियां,
जाने कितने टूटे हुए साकी, तेरे पैमाने होते है
बस नाम ही सुनते है हीर राँझा ओ शिरी फरहाद,
ऐसी मिसालों को देखे, अब ज़माने होते है
सदा लेने का ही नाम तो ज़िन्दगी नहीं यारो,
कितने है क़र्ज़ हमपे, जो हमे चुकाने होते है
©2009 दीप्ती
ज़िन्दगी के कितने रास्ते वीराने होते है
जहाँ भी देखो वहां सिर्फ बेगाने होते है
गम तो ये है की बनके, दोस्त वो आते है
कमबख्त बेवफा भी, वफ़ा के बहाने होते है
हर रोज़ डूबी होती है शराब में कितनी ही जिंदगियां,
जाने कितने टूटे हुए साकी, तेरे पैमाने होते है
बस नाम ही सुनते है हीर राँझा ओ शिरी फरहाद,
ऐसी मिसालों को देखे, अब ज़माने होते है
सदा लेने का ही नाम तो ज़िन्दगी नहीं यारो,
कितने है क़र्ज़ हमपे, जो हमे चुकाने होते है
©2009 दीप्ती
Thursday, July 2, 2009
संग्रह
मेरे प्रिय ब्लॉग मित्रो अभी कुछ दिनों तक मैं अपने संग्रह की कुछ प्रिय प्रतियाँ ही पोस्ट करती रहूंगी आशा है आप सभी को पसंद आएँगी
कितने चेहरे है आसपास मेरे, रोज़ आते है निकल जाते है
तुम ही आँखों में मेरी रहते हो, हम कंहा उनको देख पाते है
अब तो लगता है की तेरे बिना, ना जीना होगा मेरा कहीं
नींद नहीं आती है रातो को, और आती है तो ख्वाब तेरे आते है
रुसवा रहती हूँ मैं खुदा से, दिल मुझको मनाया करता है
एसी भी क्या तकदीर मेरी, क्यों तुमसे नहीं मिल पाते है
जाने किसका साथ लिखा है, खुदा ने मुकद्दर में मेरे
जब सोचे इस बारे में, तो ख्याल तेरे ही आते है
©२००९ दीप्ती
कितने चेहरे है आसपास मेरे, रोज़ आते है निकल जाते है
तुम ही आँखों में मेरी रहते हो, हम कंहा उनको देख पाते है
अब तो लगता है की तेरे बिना, ना जीना होगा मेरा कहीं
नींद नहीं आती है रातो को, और आती है तो ख्वाब तेरे आते है
रुसवा रहती हूँ मैं खुदा से, दिल मुझको मनाया करता है
एसी भी क्या तकदीर मेरी, क्यों तुमसे नहीं मिल पाते है
जाने किसका साथ लिखा है, खुदा ने मुकद्दर में मेरे
जब सोचे इस बारे में, तो ख्याल तेरे ही आते है
©२००९ दीप्ती
संग्रह
मेरे प्रिय ब्लॉग मित्रो बहुत व्यस्तता के चलते आजकल मैं ब्लोग कम लिख पा रही हूँ मैंने अपने कॉलेज दिनों में अपने लिए, अपने अपनों के लिए और अपनों की तरफ से उनके अपनों के लिए बहुत कुछ लिखा था आज उसी संग्रह में से कुछ लिख रही हूँ
हम इन्तेज़ार करते रहे तेरे लफ्जो का
तुम आखिरी पल तक खामोश नज़र आए
मुझे दामन में सिर्फ कांटे ही मिले
यूँ तो फूल के मौसम हर बरस आए
कोशिशो में वक़्त जाया किया मैंने
ये दर्द-ए-ख्याल हर पहर आए
रोज़ करते रहे सजदा खुदा के सामने
कभी तो मेरे अश्को पे उसे तरस आये
हम तूफानों से लड़ते रहे सदा
तेरे जाने के बाद ये दिल-ए-कहर आए
कितना हमने तुम्हे बताना चाहा
मजाल है कोई तुमपे असर आये
©२००९ दीप्ती
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