ज़िन्दगी के इस मोड़ पर अब दास्ताँ क्या कहे
ये मंज़र देख कर हम हो गए बेजुबान, क्या कहे
कभी बातो से कभी खामोशी से आप समझ गए होंगे
चुप रहे यु ही हमेशा कि बेवजह, क्या कहे
तसव्वुर में आपके यु खोये रहते थे हम
कब शाम सा होता था, आसमान क्या कहे
ज़िन्दगी के आखिरी पल तक आपका साथ हो
मेरे खुदा अब तुमसे हम, और दुआ क्या कहे
अपनी चाहत पर भरोसा और दिल में प्यार रखना
सदा खुश रहने का अब, फलसफा क्या कहे
दीप्ती©2009
Wednesday, September 16, 2009
Friday, September 11, 2009
दोस्ती
बचपन से अब तक हर किस्से की गवाह दोस्ती
हर मोड़ पर हमको मिली बेपनाह दोस्ती
आंसू से हँसी तक सदा साथ साथ है
ऐसी है हर दोस्त की हमराह दोस्ती
अकेले से हो जाते थे हम तब दोस्तों
होती थी हमसे जों ये खफा दोस्ती
तुम से ही तो हर दर्द हर राज़ बांटा है
तू ही तो रही हमारी मैकदा दोस्ती
खूबसूरत तुझसे ज़िन्दगी का हर पड़ाव है
बहुत महफूज़ है तेरी पनाह दोस्ती
तू रही है रहनुमा ज़िन्दगी की हर राह पर
तेरे रहते न होंगे कभी गुमराह दोस्ती
तू साथ है तो हर तूफ़ान पार कर लेंगे
फ़िर कश्ती की भी न है परवाह दोस्ती
दीप्ती ©2009
हर मोड़ पर हमको मिली बेपनाह दोस्ती
आंसू से हँसी तक सदा साथ साथ है
ऐसी है हर दोस्त की हमराह दोस्ती
अकेले से हो जाते थे हम तब दोस्तों
होती थी हमसे जों ये खफा दोस्ती
तुम से ही तो हर दर्द हर राज़ बांटा है
तू ही तो रही हमारी मैकदा दोस्ती
खूबसूरत तुझसे ज़िन्दगी का हर पड़ाव है
बहुत महफूज़ है तेरी पनाह दोस्ती
तू रही है रहनुमा ज़िन्दगी की हर राह पर
तेरे रहते न होंगे कभी गुमराह दोस्ती
तू साथ है तो हर तूफ़ान पार कर लेंगे
फ़िर कश्ती की भी न है परवाह दोस्ती
दीप्ती ©2009
Thursday, September 10, 2009
नई रचना
आज एक बिल्कुल ताजी रचना यहाँ पोस्ट कर रही हु जो इसी वक्त ब्लॉग पर लिख रही हु आशा कीजिये अच्छी हो
एक तमन्ना है इन पंछियों से बात करने की
एक आरजू है इस जीवन में तितलियों के रंग भरने की
ख्वाब है की हमको भी पंख लग जाए
एक जुस्तजू है इस असमान को पार करने की
कभी इस चाँद से कभी सितारों से जलते है हम
एक गुजारिश है कुछ जिंदगियों में रौशनी करने की
चाहत है इन नदियों का रुख मोड़ दे हम कभी
एक कसक है सूखे दरख्त को तर करने की
ऐ बादल न तरसाया कर उन आँखों को युही
एक दुआ है तेरे बस झूम कर बरसने की
ऐ खुदा कुछ सवाल दिमाग में है अजीब से
एक इछा है तुमसे बाते दो चार करने की
दीप्ती©2009
एक तमन्ना है इन पंछियों से बात करने की
एक आरजू है इस जीवन में तितलियों के रंग भरने की
ख्वाब है की हमको भी पंख लग जाए
एक जुस्तजू है इस असमान को पार करने की
कभी इस चाँद से कभी सितारों से जलते है हम
एक गुजारिश है कुछ जिंदगियों में रौशनी करने की
चाहत है इन नदियों का रुख मोड़ दे हम कभी
एक कसक है सूखे दरख्त को तर करने की
ऐ बादल न तरसाया कर उन आँखों को युही
एक दुआ है तेरे बस झूम कर बरसने की
ऐ खुदा कुछ सवाल दिमाग में है अजीब से
एक इछा है तुमसे बाते दो चार करने की
दीप्ती©2009
Thursday, September 3, 2009
नीर नारी
एक और कविता आज पोस्ट कर रही हूँ , खुदा की दो बहुत ही खास रचना की तुलना करने की कोशिश की है आशा है आपको पसंद आयेगी
नीर नारी
तुझ बिन जीवन का अंश नहीं
तुझ बिन मानुष का वंश नहीं
सारा जग तेरा आभारी
तू नीर है तू नारी
राह मे आये चाहे जितने भी रोडे
तू अपने साहस से हर मुश्किल को तोडे
शक्ति तुझमे है सारी
तू नीर है तू नारी
तुझमे सब मिल जाते है
तृप्त सब तुजसे हो जाते है
हो सम्मान के अधिकारी
तू नीर है तू नारी
तुम अविरल बहते रहते हो
तुम धैर्य बांधे रहते हो
हर तरह तुम अविकारी
तू नीर है तू नारी
दीप्ती©2009
नीर नारी
तुझ बिन जीवन का अंश नहीं
तुझ बिन मानुष का वंश नहीं
सारा जग तेरा आभारी
तू नीर है तू नारी
राह मे आये चाहे जितने भी रोडे
तू अपने साहस से हर मुश्किल को तोडे
शक्ति तुझमे है सारी
तू नीर है तू नारी
तुझमे सब मिल जाते है
तृप्त सब तुजसे हो जाते है
हो सम्मान के अधिकारी
तू नीर है तू नारी
तुम अविरल बहते रहते हो
तुम धैर्य बांधे रहते हो
हर तरह तुम अविकारी
तू नीर है तू नारी
दीप्ती©2009
गम
मेरे प्रिय ब्लॉग मित्रो आज बहुत दिनों के बाद मैं अपने ब्लॉग की सुध ले पाई हूँ उसके लिए अवश्य ही खेद है आज जो रचना मैं पोस्ट कर रही हूँ वो एक करीबी दोस्त के लिए है आशा है उसे पसंद आयेगी और आप को भी
जब जब गमो के बादल ज़िन्दगी पे छा जाते है
वो इन दो आँखों से बरस के गिर जाते है
बह जाने दो इन अश्को को, ग़मों को दूर जो करते है
ग़मी में ही रहते है जो इन्हें बचने का कसूर करते
गमो से भरा दिल रोने से हल्का हो जाता है
और ये गम मेरे दोस्त बस कलका हो जाता है
खुदा की इनायत हमपे ये हमारे अश्क है
पत्थर हो जाते है वो आँखे जो रहती खुश्क है
और हंसते है वही यहाँ जो रो भी सकते है
वो ही यहाँ पाते है कुछ जो खो भी सकते है
दीप्ती©2009
जब जब गमो के बादल ज़िन्दगी पे छा जाते है
वो इन दो आँखों से बरस के गिर जाते है
बह जाने दो इन अश्को को, ग़मों को दूर जो करते है
ग़मी में ही रहते है जो इन्हें बचने का कसूर करते
गमो से भरा दिल रोने से हल्का हो जाता है
और ये गम मेरे दोस्त बस कलका हो जाता है
खुदा की इनायत हमपे ये हमारे अश्क है
पत्थर हो जाते है वो आँखे जो रहती खुश्क है
और हंसते है वही यहाँ जो रो भी सकते है
वो ही यहाँ पाते है कुछ जो खो भी सकते है
दीप्ती©2009
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