Friday, September 11, 2009

दोस्ती

बचपन से अब तक हर किस्से की गवाह दोस्ती
हर मोड़ पर हमको मिली बेपनाह दोस्ती
आंसू से हँसी तक सदा साथ साथ है
ऐसी है हर दोस्त की हमराह दोस्ती

अकेले से हो जाते थे हम तब दोस्तों
होती थी हमसे जों ये खफा दोस्ती

तुम से ही तो हर दर्द हर राज़ बांटा है
तू ही तो रही हमारी मैकदा दोस्ती

खूबसूरत तुझसे ज़िन्दगी का हर पड़ाव है
बहुत महफूज़ है तेरी पनाह दोस्ती

तू रही है रहनुमा ज़िन्दगी की हर राह पर
तेरे रहते न होंगे कभी गुमराह दोस्ती

तू साथ है तो हर तूफ़ान पार कर लेंगे
फ़िर कश्ती की भी न है परवाह दोस्ती

दीप्ती ©2009

2 comments:

  1. tere rehte na honge kabhi gumraah dosti

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  2. Anonymous27/1/12

    ur poems r awesome

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