Thursday, September 3, 2009

गम

मेरे प्रिय ब्लॉग मित्रो आज बहुत दिनों के बाद मैं अपने ब्लॉग की सुध ले पाई हूँ उसके लिए अवश्य ही खेद है आज जो रचना मैं पोस्ट कर रही हूँ वो एक करीबी दोस्त के लिए है आशा है उसे पसंद आयेगी और आप को भी

जब जब गमो के बादल ज़िन्दगी पे छा जाते है
वो इन दो आँखों से बरस के गिर जाते है

बह जाने दो इन अश्को को, ग़मों को दूर जो करते है
ग़मी में ही रहते है जो इन्हें बचने का कसूर करते

गमो से भरा दिल रोने से हल्का हो जाता है
और ये गम मेरे दोस्त बस कलका हो जाता है

खुदा की इनायत हमपे ये हमारे अश्क है
पत्थर हो जाते है वो आँखे जो रहती खुश्क है

और हंसते है वही यहाँ जो रो भी सकते है
वो ही यहाँ पाते है कुछ जो खो भी सकते है
दीप्ती©2009

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