प्रिय मित्रो आप की होंसला-ए-अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया आज फिर मैं हाजिर हूँ अपनी एक नयी कविता के साथ, ये कविता मैंने उसपे लिखी है जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता : ईश्वर पर
ईश्वर
तुम आस हो, तुम ईश हो,
वरदान हो आशीष हो
हर पल मेरे तुम संग मेरे,
तुम ही तो मामीश हो
न मूरत में, न तस्वीरो में,
न मस्जिदों में, न मंदिरों में
तुम तो रहते अंतर्मन में,
क्या राजा में क्या फकीरों में
तुम ज्ञान का एक दीप हो,
तुम सबसे मेरे समीप हो
मेरे मन के तमस को दूर करते,
ऐसे ही तुम देदीप्य हो
सब तेरे ही अंश है,
चाहे कृष्ण है या कंस है
मेरी आत्मा है तुझसे बनी,
मै तेरा अंश हु तू मामंश हैं
©2009 दीप्ती
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achchhi kavita hai
ReplyDeletebahut achhee rachna hai...likhtee rahein..
ReplyDeletetu pahle yeh poems likhti to hamare school ki archna(prayer booklet ) me teri poem bhi as a prayer hoti :)
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