Sunday, June 14, 2009

प्रिय मित्रो आप की होंसला-ए-अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया आज फिर मैं हाजिर हूँ अपनी एक नयी कविता के साथ, ये कविता मैंने उसपे लिखी है जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता : ईश्वर पर

ईश्वर
तुम आस हो, तुम ईश हो,
वरदान हो आशीष हो
हर पल मेरे तुम संग मेरे,
तुम ही तो मामीश हो

न मूरत में, न तस्वीरो में,
न मस्जिदों में, न मंदिरों में
तुम तो रहते अंतर्मन में,
क्या राजा में क्या फकीरों में

तुम ज्ञान का एक दीप हो,
तुम सबसे मेरे समीप हो
मेरे मन के तमस को दूर करते,
ऐसे ही तुम देदीप्य हो

सब तेरे ही अंश है,
चाहे कृष्ण है या कंस है
मेरी आत्मा है तुझसे बनी,
मै तेरा अंश हु तू मामंश हैं
©2009 दीप्ती

3 comments:

  1. bahut achhee rachna hai...likhtee rahein..

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  2. Anonymous17/6/09

    tu pahle yeh poems likhti to hamare school ki archna(prayer booklet ) me teri poem bhi as a prayer hoti :)

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