Friday, June 26, 2009

सबा के साथ

प्रिय दोस्तों
आज बहुत दिनों बाद मै हाजिर हु एक नयी कविता लेकर, नाम है:

हर रोज़ सबा के साथ

ख़त्म करती है अपना सफ़र, जब जब भी ये रात,
एक नया पल आता है हर रोज़ सबा के साथ

रवि उदय होता है अपने, केसर रूप के संग
तबस्सुम भी हो जाती उसके रंग में रंग
सबको मन चाहा रंग देती लिए किरण रंग सात
एक नया पल आता है हर रोज़ सबा के साथ

पंछियों के कलरव से, सारा जग है जागे
पंख पसारे ये गगन में, इधर उधर है भागे
पीहू पीहू कु कु करते, जाने क्या करते बात
एक नया पल आता है हर रोज़ सबा के साथ

हवाए ठंडी ठंडी, मन को शीतल करती
माना अब शीतलता, होती सूरज के संग भी
सब को सुखमय करती, बिना विचारे जात
एक नया पल आता है हर रोज़ सबा के साथ
©२००९ दीप्ती

1 comment:

  1. bahut acchi kavita hai... saba ki .. sabah ke saath haatho leke apane saba ka haath

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